Thursday, September 11, 2014

Itne Bade jokes padoge

समाज की एक कड़वी हकीकत:-
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जिसके गवाह हम सब हैं, जिसके जिम्मेदार हम सब हैं।
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यह दर्दनाक घटना एक परिवार की है। जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। जो जैसे तैसे अपना जीवन घसीट रहे थे।
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घर का मुखिया एक लम्बे अरसे से बीमार था। जो जमा पूंजी थी वह डॉक्टरों की फीस और दवाखानों पर लग चुकी थी। लेकिन वह अभी भी चारपाई से लगा हुआ था। और एक दिन इसी हालत में अपने बच्चों को अनाथ कर इस दुनिया से चला गया।
रिवाज के अनुसार तीन दिन तक पड़ोस से खाना आता रहा, पर चौथे दिन भी वह मुसीबत का मारा परिवार खाने के इन्तजार में रहा मगर लोग अपने काम धंधों में लग चुके थे, किसी ने भी इस घर की ओर ध्यान नहीं दिया।
बच्चे अक्सर बाहर निकलकर सामने वाले सफेद मकान की चिमनी से निकलने वाले धुएं को आस लगाए देखते रहते। नादान बच्चे समझ रहे थे कि उनके लिए खाना तयार हो रहा है। जब भी कुछ क़दमों की आहत आती उन्हें लगता कोई खाने की थाली ले आ रहा है। मगर कभी भी उनके दरवाजे पर दस्तक न हुयी।
माँ तो माँ होती है, उसने घर से रोटी के कुछ सूखे टुकड़े ढूंढ कर निकाले। इन टुकड़ों से बच्चों को जैसे तैसे बहला फुसला कर सुला दिया।
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अगले दिन फिर भूख सामने खड़ी थी। घर में था ही क्या जिसे बेचा जाता, फिर भी काफी देर "खोज" के बाद चार चीजें निकल आईं। जिन्हें बेच कर शायद दो समय के भोजन की व्यवस्था हो गई।
बाद में वह पैसा भी खत्म हो गया तो जान के लाले पड़ गए।
भूख से तड़पते बच्चों का चेहरा माँ से देखा नहीं गया। सातवें दिन विधवा माँ ही बड़ी सी चादर में मुँह लपेट कर मुहल्ले की पास वाली दुकान पर जा खड़ी हुई। दुकानदार से महिला ने उधार पर कुछ राशन माँगा तो दुकानदार ने साफ इनकार ही नहीं किया बल्कि दो चार बातें भी सुना दीं।
उसे खाली हाथ ही घर लौटना पड़ा। एक तो बाप के मरने से अनाथ होने का दुख और ऊपर से लगातार भूख से तड़पने के कारण उसके सात साल के बेटे की हिम्मत जवाब दे गई और वह बुखार से पीड़ित होकर चारपाई पर पड़ गया।
बेटे के लिए दवा कहाँ से लाती, खाने तक का तो ठिकाना था नहीं। तीनों घर के एक कोने में सिमटे पड़े थे।
माँ बुखार से आग बने बेटे के सिर पर पानी की पट्टियां रख रही थी, जबकि पाँच साल की छोटी बहन अपने छोटे हाथों से भाई के पैर दबा रही थी। अचानक वह उठी, माँ के कान से मुँह लगा कर बोली "माँ भाई कब मरेगा???"
माँ के दिल पर तो मानो जैसे तीर चल गया, तड़प कर उसे छाती से लिपटा लिया और पूछा "मेरी बच्ची, तुम यह क्या कह रही हो?"
बच्ची मासूमियत से बोली, "हाँ माँ ! भाई मरेगा तो लोग खाना देने आएँगे ना???"------------
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कृपया अपनी दौलत से मंदिरों में या धर्म के नाम पर चढ़ावा चढ़ाने की बजाय किसी असहाय भूखे को खाना खिलाकर पुण्य प्राप्त करें।
भगवान भी खुश होंगे और आप भी।
 

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 इसे शांत चित्त से पढिए।
हर लडकी के लिए प्रेरक कहानी...
और लड़कों के लिए अनुकरणीय शिक्षा...,
कोई भी लडकी की सुदंरता उसके चेहरे से ज्यादा दिल की होती है।
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अशोक भाई ने घर मेँ पैर रखा....'अरी सुनतीे हो !'
आवाज सुनते ही अशोक भाई की पत्नी हाथ मेँ पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और बोली
"अपनी beti का रिश्ता आया है,
अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है,
लडके का नाम युवराज है ।
बैँक मे काम करता है।
बस beti  हाँ कह दे तो सगाई कर देते है."
Beti उनकी एकमात्र लडकी थी..
घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था ।
कभी कभार अशोक भाई सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और beti के साथ कहा सुनी हो जाती लेकिन
अशोक भाई मजाक मेँ निकाल देते ।
Beti खूब समझदार और संस्कारी थी ।
S.S.C पास करके टयुशन, सिलाई काम करके पिता की मदद करने की कोशिश करती ।
अब तो beti ग्रज्येएट हो गई थी और नोकरी भी करती थी
लेकिन अशोक भाई उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे...
और रोज कहते 'बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।'
दोनो घरो की सहमति से beti  और
युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया.
अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.
अशोक भाई ने beti को पास मेँ बिठाया और कहा-
" बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज ।
तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये जमा किए है।
यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।.. तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तू तेरे खाते मे जमा करवा देना.'
"OK PAPA" - beti ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम मेँ चली गई.
समय को जाते कहाँ देर लगती है ?
शुभ दिन बारात आंगन में आयी,
पंडितजी ने चंवरी मेँ विवाह विधि शुरु की।
फेरे फिरने का समय आया....
कोयल जैसे कुहुकी हो ऐसे beti दो शब्दो मेँ बोली
"रुको पडिण्त जी ।
मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ मेरे पापा के साथ बात करनी है,"
"पापा आप ने मुझे लाड प्यार से बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...
लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक मैँ वापस देती हूँ।
इन रुपयों से मेरी शादी के लिए लिये हुए उधार वापस दे देना
और दूसरा चेक तीन लाख जो मेने अपनी पगार मेँ से बचत की है...
जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ,
मैँ नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे !
अगर मैँ आपका लडका होता तब भी इतना तो करता ना ? !!! "
वहाँ पर सभी की नजर beti  पर थी...
"पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू वो दोगे ?"
अशोक भाई भारी आवाज मेँ -"हां बेटा", इतना ही बोल सके ।
"तो पापा मुझे वचन दो"
आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे....
तबांकु, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे।
सब की मोजुदगी मेँ दहेज मेँ बस इतना ही मांगती हूँ ।."
लडकी का बाप मना कैसे करता ?
शादी मे लडकी की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन
आज तो बारातियो कि आँखो मेँ आँसुओ कि धारा निकल चुकी थी।
मैँ दूर se us beti को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था....
रुपये का लिफाफा मैं अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था....
साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ??
लेकिन एक सवाल मेरे मन मेँ जरुर उठा,
"भ्रूण हत्या करने वाले लोगो को is जैसी लक्ष्मी मिलेगी क्या" ???
 

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 College life is like Reliance !!
"Karlo Duniya Mutthi Me"
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but friendship is like LIC
Zindagi ke saath bhi
Zindagi ke baad bhi 
 
 

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