Monday, December 1, 2014

Indore k tempo par nibandh...

 
टेम्पू पे निबंध.............
इंदौर की पेचान रहा है अपना टेम्पू। पेले काले ढूस और पीले पट में रंगता था। फिर फुल पीले कलर में भी रंगा टेम्पू। आइट-साइट में तुलसी पेलवान का नाम लिखा गया। तो देवेनसिंग यादव, अब्दुल रऊफ, प्रमोद टंडन का नाम टेम्पू के कारण ही चला है। अपन जैसो ने पढ़ना लिखना इनके नाम से ही सीखा है। चलो भिया चलने टाइम हो गया है।
गाड़ी तो रस्ते में भी भरा जाएगी। इधर से रस्सी हिची और उधर से ऐस्सीलेटर मारा। लो पेलवान भट-भट-भट-भट-भट-भट टेम्पू चल्लू हो गया है। चलना भिया टेसन, छावनी, जीपीओ, अस्पताल। मालवामील, पाटनीपुरा। चल ए बारीक, उन मेडम को बिठा। एलआयसी जाएगी ये। गुजराती कॉलेज की छोरियों को आगे की साइड भेज।
बाबकट वाली से पेसे मत लेना। तेरी भाभी समान है। भोत सारी लड़कियां डायरेक्ट टेम्पू वाले के दिल में जाकर बैठी है। अरे भिया छुट्टे निकालो। बोनी बट्टे का टाइम है। अरे बेंजी, अपने बच्चे को गोद में लो। भिया जरा थोड़ा दबके सरक के। अरे अभी तो एक साइट छह-छह सवारी बैठी है। पांच-छह खड़ी हो जाएगी। दिल में जिगो होनी चीये।
यॉर्क के टेप पे लपक के 'फूल और कांटे' की कैसेट आगे-पीछे से रिपीट हो रही है। 'धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है' गाने के साथ मुंह में गुटखा पकाकर, टेड़ा बैठकर पीकते-थूकते 'पिलोट' गाड़ी भिन्नाट भगा रिया है। लगत में कांच में वो 'तेरी भाभी' को देख रिया है। उसने कल्ले कटाके, मिथुन इष्टाइल में बाल मशीन से सेट करवाएं हैं।
ड्राइवर का 'काम' के साथ धंदे पर भी फुल फोकस है। चल ए बारीक ! सवारी बिन रे। जीएसटीआय के छोरों को लटका। पेसे मत मांगना। पेसे मांगने पर मारते हैं। गाड़ी चले जा रही है। बंबई बजार से मालगंज, राजमोहल्ला हो के लाबरिया भेरू से बस कलारिया पहुंचने वाली है। मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, सड़क पर चलती है, बनकर हसीना।
टेम्पू चला जा रिया है। अग्गे से रस्ता चीरकर, दचके कुदाकर, अंदर सवारियां दबाकर, पीछे से धुआं छोड़कर। चले चला है। तभी टक-टक करके, मुंह से अजीब आवाज़ निकालकर बारीक गाड़ी रुकवाता है। आप कहीं मत जाना ओल्ड जीडीसी की छुट्टी होने पर टेम्पू फिर भराएगा। आज भले ही परमिट नी हो, लेकिन टेम्पो यादों में तो चलता रहेगा।
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एक संत की कथा चल रही थी.!!अचानक एक बालिका खड़ी हो गई.!!
उसके चेहरे पर आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था.!!
उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,
लेकिन बालिका नहीं मानी.!!
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संत ने पूछा...... बोलो बालिका क्या बात है?
बालिका ने कहा-
महाराज,घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है.!!
वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास रोक टोक नहीं होती.!!
इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है.!
यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ,लड़को से मेल जोल मत रखो..
आदि आदि.!
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संत ने उसकी बाते सुनी और मुस्कुराने लगे.!!
उसके बाद उन्होंने पूछा- बालिके, तुमने कभी हार्डवेअर की दुकान देखी?
भारी से भारी लोहेकी वस्तुएं
हरदम खुली पड़ी रहती है.!!
दुकानदार को भी उन चीजोंकी
कोई चिंता नहीं रहती.!!
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लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में.!!
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अब देखो जौहरी की दुकान का
हाल....
जब भी कोई ग्राहक हीरा
खरीदने आता है...
जौहरी एक बड़ी तिजोरी खोलता है.!!
तिजोरी के भीतर का कोई
छोटा सा लॉकर खोलकर
उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा.!!
डिब्बी में रेशमी मखमल बिछा होगा.!!
और उस पर होगा हीरा.!!
"अनमोल हीरा"
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क्योंकि जौहरी जानता है की अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी.!!
जरासी खरोंच से वह
अनमोल हिरा,दो कवडी का
हो सकता है.!!
बस समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है.!!
अनमोल हीरे की तरह.!!
जरा सी खरोंच से उस लड़की का और उसके परिवार का नाम मिट्टीमे मिल सकता है.!!
लडकिया तो हिरे से भी ज्यादा
अनमोल होती है.!!
इसलिए हर कोई बेटी की
हिफाजत करता है.!!
बस यही अन्तर है लड़कीयों में और लड़कों में.!!
इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक क्यों करता है??
बालिका को समझ में आ गया की बच्चियों की फिक्र ज्यादा क्यों होती है.!!
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